एक ताबई हज़रत अबू बक्र बिन अबी मरीयम (रजि.) कहते हैं, “हज़रत मुहम्मद ﷺ के सहाबी हज़रत मुक्दाम बिन मदी कअब (रजि.) के पास कई मवेशी (गाऐं उंट वगैरा) थे। उनकी नौकरानी मवेशियों का दूध दूहती थी और उसे बाज़ार में बेचा करती थी और हज़रत मुक्दाम (रजि.) वह रूपया वसूल करते थे। बहुत से लोगों ने उसे बुरा समझा और उनके व्यवहार पर आश्चर्य प्रकट किया। (उन्हें उम्मीद थी कि हज़रत मुक्दाम (रजि.) को चाहिए के वह दुध तोहफा (उपहार) में रिश्तेदारों को दे दें या वह आमदनी नौकरानी को दे दें।) हज़रत मुक्दाम (रजि.) ने अपने रूपया कमाने की वकालत की और फरमाया, “मेरे लिए अपना माल बेचकर रूपया कमाने में कोई बुराई (गलती) नहीं हैं, क्योंकि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, “एक ज़माना आऐगा जिस में सिर्फ माल (रूपया) से आपका मक्सद पूरा होगा।" (मसनद अहमद, मुआरिफुल हदीस, खंड 7, पृ. 66)
ऊपर दी गई हदीस को हज़रत सुफियान सूरी (रजि.) के निम्नलिखित बयान से अधिक बेहतर तौर पर समझा जा सकता हैः
• हज़रत सुफियान सूरी (रज़ि.) ने फरमायाः "अब से पहले, हज़रत मुहम्मद ﷺ के दौर में और खिलाफत के दौर में माल एक नापसंदीदा (अप्रिय) चीज़ों में गिना जाता था। लैकिन हमारे ज़माने में माल मोमिन की ढाल है," फरमायाः "अगर यह दिरहम और दीनार (रूपये और पैसे) आज हमारे पास न होते, तो राजा और मालदार लोग हमको अपना रूमाल बना लेते। (अर्थात हमें जैसा चाहे इस्तेमाल करते) आज जिस व्यक्ति के पास दिरहम और दीनार (रूपया और पैसा) हो उसको किसी काम में लगाए (ताकि लाभ हो, माल बढ़े) क्योंकि यह पैसा दौर है कि अगर आदमी मोहताज हो जाए, तो सबसे पहले वह अपना दीन (धर्म) बेच देगा। हलाल (जायज़) कमाई खर्च करना फिजुल खर्ची नहीं है।” (ज़ादे राह सफहा 86)
• हज़रत अबू कल्बा (रज़ि.) ने फरमाया, "व्यापार पूरी ईमानदारी और मेहनत से करो, क्योंकि अगर तुम ऐसा करोगे तो सिराते मुस्तकीम (सीधे सच्चे रास्ते) पर पूरी ईमानदारी और बिल्कुल सही तरीके से चलोगे। इस तरह माल तुम्हें सीधे सच्चे रास्ते से नहीं हटाएगा।" (ज़ादे राह सफहा 86)
• हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमायाः "अल्लाह से डरने वाले लोगों के लिए मालदार होने में कोई खतरा नहीं है और तंदुरूस्ती (स्वास्थ्य) अल्लाह से डरनेवाले लोगों के लिए मालदारी से बेहतर चीज़ है और दिल कि खुशी व इतमीनान (संतुष्टता) अल्लाह तआला की नेअमत (वरदान) है।” (मिश्कात, बा-हवाला ज़ादे राह, पृ. 176)
हज़रत उमर बिन आस (रजि.) कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमायाः “किसी नेक आदमी के लिए ईमानदारी से कमाया हुआ माल (हलाल माल) एक बढ़िया चीज़ (काबिले कद्र नेमते इलाही/सम्मानित ईश्वरीय वरदान) है।"
(मसनद अहमद, बा-हवाला मुआरिफुल हदीस जिल्द 7 पृ. 7)
• हज़रत मुहम्मद ﷺ इन शब्दों में दुआ मांगते थेः
“ऐ अल्लाह मैं कुफ्र (आप को एक ईश्वर ना मानने से) और मोहताजगी से आप की पनाह मांगता हूँ। और कब्र के अज़ाब से मैं आपकी पनाह मांगता हूँ। आपके सिवा कोई इबादत के लायक नहीं है।” (अबू दाऊद, अंजर सही इब्ने माजा 142/3)
जैसे कुफ्र और गुनाह से जहन्नुम (नर्क) और कब्र का अज़ाब होता है जिसमें बहुत तकलीफ होती है। उसी तरह मुफलिसी और गरीबी से भी इंसान कठोर दिमागी और शारीरिक कष्टों से जूझता है। इसलिए हज़रत मुहम्मद ﷺ ने मुफलिसी और गरीबी से अल्लाह की शरण मांगी थी और हमें भी मांगनी चाहिए। और अपनी पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हमारी आमदनी बहुत अच्छी हो।
क्यू. एस. खान
(B.E. Mech)
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