हज तमत्तो के फ़र्ज़, सुन्नत और वाजिबात

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8 ज़िल हिज्जा

हज का पहला दिन

• हज की नियत से नहायें या वुज़ू करें। (सुन्नत)
• मर्द हज़रात एहराम की चादरें पहन लें। औरतें रोजाना के इस्तिमाल के कपड़े पहनें। (वाजिब)
• मक्का शरीफ़ में अपनी बिल्डिंग में या हरम शरीफ़ आकर दो रकात तहय्यतुल एहराम अदा करें। यह नमाज़ पढ़ना सुन्नत है।
• हज की नियत करें। ऐ अल्लाह मै आपको राज़ी करने के लिए हज का एहराम बाँध रहा/रही हूँ आप इसको मेरे लिए आसान फ़रमा दीजिए और क़ुबूल फ़रमा लीजिए। (फ़र्ज़)
• मर्द हज़रात सर खोल कर/औरते सर ढंक कर कसरत से तलबियह पढ़े। ज़ोहर से पहले मिना पहुँचे, मिना में ज़ोहर, अस्र, मग्रिब, ईशा, फज़िर पढ़ें। (सुन्नत) 
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9 ज़िल हिज्जा 

हज का दूसरा दिन

• फज़िर पढ़ कर मिना से अरफ़ात को रवाना हों। (सुन्नत)
• ज़वाल के बाद वकूफ़, अरफ़ात में ज़ोहर और अस्र की नमाज़, तिलावत, ज़िक्र, दुआएँ। (फ़र्ज)
• अरफ़ात में एक अज़ान से मस्जिद नमरा में इमाम के पीछे ज़ोहर, अस्र, ज़ोहर के वक्त में पढ़ें। या अपने ख़ेमे में ज़ोहर की नमाज़ ज़ोहर के वक्त और अस्र की नमाज़ अस्र के वक्त अदा करें। (फ़र्ज)
• सूरज डूबने के बाद मग्रिब की नमाज़ न पढ़ें बल्कि मुज़दलफा के लिए रवाना हों।
• मुज़दलफ़ा में मगरिब और ईशा की नामज़ इशा के वक्त में पढ़ें। (वाजिब)
• मुज़दलफा से 70 कंकरियाँ चुन कर साथ रखें। (सुन्नत)
• रात मुज़दलफ़ा में ज़िक्र, तिलावत व इबादत के साथ गुज़ारें। (वाजिब)
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10 ज़िल हिज्जा

हज का तीसरा दिन

• फज़िर की नमाज़ मुज़दलफ़ा में पढ़े। सूरज निकलने के बाद मिना जायें। (सुन्नत)
• रमी करना। रमी से पहले तलबियह पढ़ना बंद कर दें। बिस्मिल्लाहि अल्लाहू अकबर कह कर आज सिर्फ़ बड़े शैतान को सात कंकरियां मारें। इसका अफ़ज़ल वक्त सूरज निकलने के बाद से ज़वाल तक है और ज़वाल के बाद से सूरज डूबने तक भी जाइज़ वक्त है और सूरज डूबने के बाद से सुबह सादिक तक मकरुह वक्त है। (वाजिब)
• रमी के बाद कु़रबानी करें, सर के बाल मुंडवायें, औरतें अपने सर के बाल कम करायें। (वाजिब)
• एहराम खोल दें। (सुन्नत)
• मक्का जाकर तवाफे़ ज़ियारत करें (क़ुरबानी के दिनों में 12 ज़िलहिज्जा के सूरज डूबने से पहले पहले तक दिन में या रात में तवाफ़ करें। यह तवाफे़ ज़ियारत कहलाता है। (फर्ज़)
• तवाफ़ के बाद दो रकात नमाज़ वाज़िबुत्तवाफ़ मक़ामें इब्राहीम के पीछे या सहने हरम में अदा करें। ज़मज़म पियें ख़ूब दिल लगा कर दुआ करें।
• सफ़ा मरवा के बीच सई करें। (सात चक्कर) (वाजिब) 
• मिना वापस आयें। रात मिना में गुज़ारें। (सुन्नत)
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11-12 जिल हिज्जा

हज का चौथा और पांचवा दिन

• तीनो जमरात की रमी करना हैं। जमरात पर जायें ज़वाल के बाद से सुबह सादिक़ तक तीनों शैतानो को सात सात कंकरियाँ एक एक करके मारना है। पहले छोटे वाले शैतान को हर कंकरी पर बिस्मिल्लाहि अल्लाहू अकबर कह कर सात कंकरियाँ मारें इसके बाद क़िब्ला रुख
खड़े हो कर दुआ करें। फ़िर इसी तरह बीच वाले शैतान को हर कंकरी पर बिस्मिल्लाहि अल्लाहू अकबर कह कर सात कंकरियाँ मारें क़िब्ला रुख़ खड़े होकर दुआ करें फिर बड़े वाले शैतान को बिस्मिल्लाहि अल्लाहू अकबर कह कर सात कंकरियाँ मारें अब रुक कर दुआ न करें बल्कि दुआ
करते हुए अपने क़्यामगाह ख़ेमा वापस आयें। (वाजिब)
• तवाफे़ ज़ियारत अगर कल नहीं किया हो तो आज करलें। (फर्ज़)
• रात मिना में गुज़ारें। 12 ज़िलहिज्जा को भी तीनों जमरात की रमी इसी तरह करना हैं। (सुन्नत)
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13 ज़िल हिज्जा 

हज का छटवां दिन

    आप 70 कंकरियाँ लाये थे। 49 कंकरियाँ मार चुके। अगर 12 ज़िल हिज्जा को मग़रिब से पहले मक्का मुकर्रमा वापस न हों और मिना में सुबह सादिक़ हो जाये तो 13 ज़िल हिज्जा को तीनों शैतानों को सात सात कंकरियाँ ज़वाल से पहले या ज़वाल के बाद इसी तरह मारें आगर 12 ज़िल हिज्जा के बाद मिना में न रुकें तो कंकरियाँ वहीं छोड़ दें। अब मक्का मुकर्रमा वापस आ सकते हैं। (वाजिब)
    मक्का मुकर्रमा में जब तक क़्याम रहे ख़ूब तवाफ़ करें दिन में और रात में भी हर तवाफ़ के सात चक्करों के बाद दो रकात नमाज़ वाजिबुत्तवाफ़ पढ़ें अगर उमरा करना चाहें तो मस्जिद आयशा या जिइरीना जाकर उमरा का एहराम बाँध कर आयें और तवाफ़ व सई करके हर बार हलक़ करायें औरतें हर बार कस्र करें। कम अज़ कम हरम शरीफ़ में एक बार पूरा कुरआन पाक पढ़ें वहाँ की एक नैकी एक लाख नैकियों के बराबर होती है। फ़िर जब मक्का मुकर्रमा से वापसी हो तो रवानगी से पहले सिले कपड़ों में तवाफ़े विदाअ करें इसमें न रमल है न इज्तिबाअ और न इसके बाद सई है बस तवाफ़ पूरा होने के बाद दो रकात
नमाज वाजिबुत्तवाफ़ पढ़ना हैं।
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आदाब जियारते मदीना मुनव्वरा

मदीना मुनव्वरा शहर में दाखि़ल होने से पहले या अपनी बिल्डिंग में मस्जिद नबवी (सल्ल०) शरीफ़ जाने से पहले बेहतर है कि नहायें, वुजू करें, साफ़ सुथरे कपड़े पहनें, मर्द हज़रात ख़ुशबू लगायें। मदीना मुनव्वरा में भी अपनी बिल्डिंग से निकलते वक्त़ हर शख़्स मर्द-औरत, बूढ़ा, जवान, बच्चा अपने साथ बिल्डिंग का कार्ड जरुर लेलें ताकि वापसी में ज़रुरत पड़ने पर इस कार्ड को दिखा कर अपनी बिल्डिंग तक पहुँना आसान हो सके। फ़िर अदब से मस्जिद नबवी (सल्ल०) शरीफ़ में दाखि़ल हों।

मस्जिद नबवी (सल्ल०) में दाखले की दुआ और एतेकाफ की नियत इस तरह करें।

بِسْمِ اللهِ وَالصَّلُوةُ وَالسَّلَامُ عَلىٰ رَسُوْلِ اللهِ اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لىِْ ذُنُوْبىِْ وَافْتَحْ لىِْ اَبْوَابَ رَحْمَتِكْ وَنَوَيْتُ سُنَّة  الْاِعْتِكاَفْ ۝
मस्जिद में दो रकात तहय्यतुल मस्जिद पढ़ें। फर्ज़ नमाज़ों को मस्जिद नबवी (सल्ल०) में बाजमाअत अदा करने का एहतेमाम करें। रियाज़ुल जन्ना में भी कम से कम दो रकात नमाज़ जरूर पढ़े, दरुद शरीफ़ पढ़ें, अस्तगफ़ार करें, गुनाहों से तौबा करें, ज़िक्र करें मस्जिद नबवी (सल्ल०) में एक बार पूरा क़ुरआन पढ़ें अदब से हुजूरे अकरम (सल्ल०) को दरुद व सलाम इस तरह पेश करें। 
اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُوْلَ اللهَ ۝ 
अस्सलातु वस्सलामु अलैयका या रसूलल्लाह
 اَلصَّلٰو ةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا حَبِيْبَ اللهَ ۝ 
अस्सलातु वस्सलामु अलैयका या हबीबल्लाह
اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا خَيْرَ خَلْقِ اللهَ ۝
अस्सलातो वस्सलामो अलैयका या खैयर खलकिल्लाह 
 اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ اَيُّهَا الْنَّبِىُّ وَرَحْمَةُ اللهِ وَبَرَكَاتُهُ ۝ 
अस्सलातो वस्सलामो अलैयका अय्योहन नबीयो व रहमतुल्लाहे व बरकातोहू
اَعُوذُ بِا اللهِ مِنَ الشَّيْطَانِ الرَّجِيم بِسْمِ اللهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِيْم اِنَّ اللهَ وَمَلٰئِكَتَهُ يُصَلُّوْنَ عَلَى النَّبِى يَا اَيُّهَاالَّذِيْنَ آمَنُوْا صَلُّوْا عَلَيْهِ وَسَلِّمُوْا تَسْلِيْماً ۝
अऊजो बिल्लाहे मिनश्शैतानिर्रजीम बिस्मिल्लाह अर्रहमा निर्रहीम इन्नल्लाहा वमलाइकताहू युसल्लूना अलन्नबीये याअय्योहल्लजीना आमनु सल्लु अलैयहे वसल्लेमु तस्लीमा
(1) बार पढ़ कर मुवाजाह शरीफ़ में खड़े हो कर आक़ा व मौला को मुख़ातब करके 70 बार दरुद शरीफ़ इस तरह पढ़ें। 
اَلصَّلٰوةُ وَالسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا رَسُولَ اللهِ ۝
मदीना मुनव्वरा के क़्याम के दौरान कम अज़ कम एक बार मुवाजह शरीफ़ में खड़े होकर कहें:
اَشْهَدُ اَن لَّآ  اِلٰهَ اِلَّا اللهُ وَاَشْهَدُ اَنَّكَ عَبْدُهُ وَرَسُوْلُهُ ۝
फ़िर जिन बुज़ूर्गो, अज़ीज़ों और दोस्तों ने हुज़ूरे अकरम (सल्ल०) को सलाम भेजा है उनके भेजे हुए सलाम इस तरह पहुंचा दें। हुज़ूरे अकरम (सल्ल०) आप पर ईमान रखने वाले और आप का नाम लेने वाले मेरे चन्द बुज़ूर्गो, अज़ीजों और दोस्तों ने भी आपकी खि़दमत में मेरे जरिये
सलाम अर्ज किया है। आक़ा - उनका सलाम भी क़ुबूल फ़रमा लें। हुज़ूर (सल्ल०) मेरे लिए, मेरे माँ बाप और तमाम मोमिनीन मोमिनात व मुस्लिमीन व मुस्लेमात के लिए भी अपने रब से मग़फ़िरत माँगें। हम सब भी आपकी शिफ़ाअत के तलबगार और उम्मीदवार हैं। हज़रत अबु बकर सिद्दीक़ रजि० को सलाम 
اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا سَيَّدْنَا اَبَا بَكَرْ صِدِّيْقِ  ؓ  اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا خَلِيْفَةَ رَسُولِ اللهِ فِيْ الْغَارِ جَزَاكَ اللهُ عَنَّا وَعَنْ اُمَّةِ مُحَمَّدْ ﷺ اَفْضَلَ الْجَزَاء ۝
हज़रत उमर फ़ारूख़ रजि० को सलाम
 اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا عُمَرْ اِبْنُ الْخَطَّابِ  ؓ  اَلسَّلَامُ عَلَيْكَ يَا اَمِيْرَ الْمُؤْمِنِيْنَ جَزَاكَ اللهُ عَنَّا وَعَنْ اُمَّةٍ مُحَمَّدْ ﷺ اَفْضَلَ الْجَزَاء ۝
सलाम के बाद किब्ला रुख़ हो कर ख़ूब दुआ करें।
जन्नतुल बक़ी वालों को सलाम
اَلسَّلَامُ عَلَيْكُمْ يَا اَهْلَ لْقُبُوْرِ يَغْفِرُ اللهْ لَنَا وَلَكُمْ اَنْتُمْ سَلَفُنَا وَنَحْنُ بِالْاَ ثَرْ وَ اِنَّا اِنْ شَآءَ اللهُ بِكُمْ لَا حِقُوْنَ اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِأَهْلِ بَقِيْعِ الْغَرْقَدْ اَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لِأَهْلِ بَقِيْعِ الْغَرْقَدْاَللّٰهُمَّ اغْفِرْ لَأَهْلِ بَقِيْعِ الْغَرْقَدْ ۝
अस्सलामो अलयकुम या अहलल कुबूरे यगफिरुल्लाहो लना वलाकुम अनतुम सलफोना व नाहनो बिल असर वइन्ना इंशाअल्लाहो बेकुम लाहेकूना अल्लाहुमगफिर लेअहले बीइल ग़रकद अल्लाहुमग‌फिर लाअहले बकीइल ग़रक़द अल्लाहुमगफिर लाअहले बकीइल ग्रकद 
ऐ मोमिनीन व मुस्लेमीन एहले कुबूर तुम पर सलाम हो हम भी इंशा अल्लाह तुमसे मिलने वालें हैं। हम अपने और तुम्हारे वास्ते अल्लाह से मगफिरत मांगते हैं ऐ अल्लाह एहले बक़ी को बख़्श दे।

तरतीब व पेशकश :

हज़रत मौलाना अल्हाज मुफ्ती रईस अहमद खान साहब क़ासमी

दामत बराकातुहुम, मुहद्दिस दारूल उलूम ताज-उल-मसाजिद व (A) मुफ्ती शहर भोपाल
खलीफ़ा व मजाज़े बैयत अज़ शैख़-ए-तरीक़त आरिफ़ बिल्लाह हज़रत मौलाना अल्हाज शाह मोहम्मद क़मरूज़्ज़मा साहब
इलाहाबादी दामत बराकातुहुम.
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