• हज़रत अनस (रजि.) ने फरमाया, “एक बार मदीना के एक व्यक्ति ने हज़रत मुहम्मद ﷺ से सवाल किया (भीख मांगी)। आप ﷺ ने उससे पूछा, क्या तुम्हारे घर में कोई चीज़ हैं?" उसने कहा, “मेरे पास दो चीज़े हैं, पहला एक ग्लास जिससे मैं पानी पीता हूँ, और दूसरा कम्बल जिसपर मैं सोता हूँ।" हज़रत मुहम्मद ﷺ ने उससे फरमाया कि वह दोनों चीज़े ले आओ फिर आप ﷺ ने उन दो चीज़ों को दो दिरहम में नीलाम किया। एक दिरहम आप ﷺ ने उस गरीब आदमी को दिया ताकि वह अपने परिवार के लिए खाने का सामान खरीदे, और दूसरा दिरहम कुल्हाड़ी खरीदने के लिए दिया। जब वह व्यक्ति कुल्हाड़ी ले आया तो हज़रत मुहम्मद ﷺ ने अपने मुबारक हाथों से उसमें दस्ता (हैंडल) लगाया और उसको देकर फरमाया कि जंगल में जाए और लकड़िया काटकर बाज़ार में लाकर बेचे और उस से पैसा कमाए और उसे निर्देश दिया कि 15 दिन बाद हज़रत मुहम्मद ﷺ से मिले। उस गरीब आदमी ने आप ﷺ के निर्देश का पालन किया। 15 दिन बाद हुजूर ﷺ को खबर दी कि उसने 10 दिरहम बचाए हैं। हज़रत मुहम्मद ﷺ यह सुनकर बेहद खुश हुए और फरमाया, “कड़ी मेहनत करके रूपया कमाना तुम्हारे लिए भीख मांगने से बहुत ज़्यादा बेहतर है, ताकि कयामत के दिन (मरने के बाद हिसाब किताब का दिन) तुम्हारे माथे पर भिखारी न लिखा हो।” (इब्ने माजा 2275)
• अल्लाह तआला कुरआन शरीफ में फरमाता हैः “ऐ अहले किताब ! अपने दीन (धर्म) की बात में हद से आगे ना बढो।” (सूरह निसा आयत 171)
अर्थात अल्लाह तआला ने अपनी किसी भी किताब में रहबानीयत (सन्यास) की शिक्षा नहीं दी है। और ईसाई जो रहबानीयत (सन्यास) अख्तियार करते हैं यह दीन में सीमा से बढ़ना है। इसी तरह इस्लाम में भी कोई व्यक्ति शादी-ब्याह और कारोबार छोड़ कर “बाबा” बन जाए तो यह भी दीन में सीमा से बढ़ना है जो अल्लाह तआला को नापसंद है।
• हज़रत सोबान (रज़ि.) बयान करते हैं कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने इरशाद फरमायाः “जो व्यक्ति मुझसे वादा करले कि वह लोगों से सवाल नहीं करेगा तो मैं (अल्लाह तआला के सिवा किसी से कुछ नहीं मांगेगा) ऐसे व्यक्ति के लिए स्वर्ग का ज़मानतदार होने को तैयार हूँ।" (निसाई, अहमद, इब्ने माजा, बा-हवाला जन्नत की कुंजी, पृ. 65)
• हज़रत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रज़ि.) बयान करते हैं कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमायाः “जिस व्यक्ति को कभी फाका (भूखमरी) पेश आया और उसने लोगों से सवाल करना शुरू कर दिया तो उस का फाका (भूखमरी) कभी दूर ना होगा। और जिस ने खुदा से सवाल किया तो अल्लाह तआला उसको जल्दी या देर से ज़रूर रिज़्क़ देगा।" (उस के खाने पीने का इन्तेज़ाम करेगा।) (अबू दाऊद, बा-हवाला जन्नत की कुंजी, पृ. 66)
• इस्लाम में किसी को यह इजाज़त नहीं हैं कि वह रूपया कमाना बंद करके पूरे तौर पर सिर्फ अल्लाह की इबादत करे और अपना गुज़ारा लोगों के सदकात (दान) पर करे। (तिबरानी, बैहकी)
• नबी करीम ﷺ ने फरमाया: अरबी यानी देनेवाला हाथ लेनेवाले हाथ से बेहतर होता है।
• हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, "सदका (दान) लेना ना किसी स्वस्थ और शारीरिक तौर पर चाक व चौबंद व्यक्ति के लिए जायज़ हैं और ना ही किसी मालदार व्यक्ति के लिए।” (तिरमिज़ी)
• हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, "जो लोग अपना माल बढ़ाने के लिए भीख मांगते हैं वह अपना चेहरा ज़ख्मी (दागदार) कर लेते हैं (और बतौर सज़ा) वह दोज़ख में गरम पत्थर खाएंगे।” (तिरमिज़ी)
• हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, “जिन्हें भीख मांगने की आदत है वह कयामत के दिन अल्लाह तआला के हुजूर में इस तरह आऐंगे कि उन के चेहरों पर चमड़ी नहीं होंगी, गोश्त नहीं होगा। सिर्फ चेहरे की हड्डीयां नज़र आएंगी।” (मुस्लिम, बुखारी)
• हज़रत अबू कब्सा अन्सारी (रजि.) कहते हैं कि हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया “में कसम खाकर तीन चीज़े बयान करता हूँ:
1. किसी बंदे का माल सदका (दान) करने से कम नहीं होता।
2. जिस व्यक्ति पर जुल्म किया जाए और वह सब्र करे तो अल्लाह तआला इसी सब्र की वजह से उसकी इज़्ज़त बढ़ाते हैं।
3. जो व्यक्ति लोगों से मांगने का दरवाज़ा खोलता है अल्लाह तआला उसपर ग़रीबी का दरवाज़ा खोल देते हैं।"
(तिरमिज़ी, इब्ने माज़ा बा-हवाला मुन्तखिब अहादीस, पृ. 587)
• हज़रत मुहम्मद ﷺ के एक गुलाम थे उन्होंने हज़रत मुहम्मद ﷺ से सवाल किया कि “ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ (मैं आपका गुलाम हूँ इसलिए) क्या मैं भी आपके घर वालों में गिना जाऊंगा।" आपने फरमाया “हाँ मगर एक शर्त पर कि तुम किसी के सामने हाथ ना फैलाओ। फिर उन्होंने हज़रत मुहम्मद ﷺ के निधन के बाद भी किसी के सामने हाथ ना फैलाया।"
• डाँ. इकबाल का शेर है।
खुदी को कर बुलंद इतना के हर तकदीर से पहले ।खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है।।
तो एक मोमिन बंदे को खुद्दार (स्वाभिमानी) होना चाहिए। और परिवार, समाज या शासन की आर्थिक सहायता पर निर्भर नहीं होना चाहीए।
क्यू. एस. खान
(B.E. Mech)
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