आइये हम इस सवाल का जवाब पवित्र क़ुरआन में तलाश करते हैं। क़ुरआन शरीफ के अध्ययन से हमें दौलत के बारे में निम्नलिखित ज्ञान प्राप्त होता है।
1. दौलत अल्लाह तआला की एक रहमत (कृपा) है। अल्लाह तआला ने क़ुरआन करीम में दौलत को ‘खैर’ के नाम से याद किया है। ‘खैर’ एक अरबी शब्द हैं जिसका अर्थ है भलाई, नेकी, श्रेष्ठता, इज़्ज़त, शर्फ, करम। यानी संक्षिप्त में यह खुदा की एक रहमत है।
* क़ुरआन की वह आयातें जिनमें माल और दौलत को ‘खैर’ कहा गया है निम्नलिखित हैंः
* वमा तुनफिकू मिन खैरीन फइन्नल्लाहा बीही अलीम। ”और जो कुछ भी तुम खैर (माल) में से खर्च करो तो अल्लाह तआला उसको खूब जानता है।“ (सूरह बकरा, आयत 273)
* ”ऐ मोहम्मद ﷺ लोग तुमसे पूछते हैं कि खुदा की राह में किस तरह का माल खर्च करें। कह दो कि जो चाहो खर्च करो। लैकिन जो माल खर्च करना चाहो वह माल सब से पहले अपने अधिक निकट के रिश्तेदार को दो फिर कुछ दूर वालों को। यानी माँ-बाप और करीब के रिश्तेदारों को और यतीमों को और मुसाफिरों को, सबको दो और जो भलाई तुम करोगे अल्लाह तआला उसको जानता है।“ (सूरह बकरा, आयत 215)
(इसी तरह की क़ुरआन में और बहुत सारी आयातें हैं जैसे कीः सूरह आराफ 188, सूरह हूद 84, सूरह बक़रा 272,180)
* माल और दौलत अल्लाह तआला की रहमत है. इसलिए कई मौकों पर नबी करीम ﷺ ने इसमें बरकत के लिए दुआ फ़रमाई थी- अलजामा अलसहीह इमाम बुखारी में एक बाब का उनवान है। अरबी (बुखारीः 2/944) यानी बरकत के साथ
माल में बरकत की दुआ का बाब - उस बाब में ज़िक्र है की आप ﷺ ने अपने ख़ादिम हज़रत अनस (रजि.) के लिए माल की कसरत के साथ माल में बरकत की दुआ की : अरबी (बुखारी 2:944)
* मश्हुर मालदार सहाबी हज़रत अब्दुर्रेह्मान बिन औफ की मालदारी हुज़ूरे अकरम ﷺ कि दुआ का शुमार थी। (सूरह मन हयातु सहाबा: 2/54)
* जब नबी करीम ﷺ की ख़िदमत में दरख़्त का पहला फल लाया जाता तो आप ﷺ फलों की बरकत की दुआ फ़रमाते। अरबी (तिरमीजी 1/183)
* हज़रत अब्दुर्रेह्मान बिन औफ (रजि.) ने एक ख़ास मौके पर अन्सारी सहाबी (रजि.) हज़रत सय्यद बिन अलरबी को यह दुआ दी थी। अरबी - अल्लाह आपके माल और एहलो अयाल में बरकत दें मुझे तो बस बाज़ार का पता बता दीजिए। (बुख़ारी : 1 /561)
* नबी करीम ﷺ का इरशाद है दो शख्स सबसे ज्यादा काबिले रिश्क है। एक वह शख्स जिसको अल्लाह ने कुरआन दे दिया हो और वह रात दिन उस पर अमल करता हो और दुसरा वह शख्स जो अल्लाह ने माल दे दिया हो और वह चुपके चुपके और आलियल एैलान इस माल को खर्च करता हो। (मिश्कातः 18)
* नबी करीम ﷺ ने फरमाया माल फासिक और फाजिर के लिए वबाले जान है मुत्तकी और परहेजगार के लिए नहीं। (मिश्कात 451)
* नबी करीम ﷺ ने फ़रमाया नेक आदमी का माले हलाल बहुत खुब है। (शहाबुल इमान ‘2 /91)
* एक हदीस शरीफ का मफ़हूम है की अगर एक शख्स से उसका माल छीना जाए और माल का मालिक अपने माल के दिफ़ा और बचाव में अपनी जान पर खेल जाएं यानी इसको कत्ल कर दिया जाए तो वह शख्स शहीद माना जाएगा। (तिरमिजी ‘1/261)
* नबी करीम ﷺ ने माल और दौलत को जिस हदीस में अल्लाह तआला का फ़ज़्ल फ़रमाया वह हदीस इस तरह है, ‘अरबी’ अल्लाह जिसपर चाहे अपना फ़ज़ल कर दे (यानी अमीर बना दे)। किसी को क्या मजाल है के एतराज करें। (अहयाए अलोमुद़दीनः 4‘176) (यह हदीस एक तवील हदीस का हिस्सा है जिसमें नबी करीम ﷺ ने गरीब सहाबा को नमाज़ के बाद पढ़ने के लिए कुछ तस्बिहात बताए थे ताकी वह भी अमिर सहाबा की तरह सवाब हासिल करें।)
क्यू. एस. खान
(B.E. Mech)
क्यू. एस. खान की पुस्तकें इंटरनेट पर पढ़ने तथा डाउनलोड करने के लिए
निम्नलिखित वेबसाइटस् पर मुफ्त उपलब्ध हैं।
www.freeeducation.co.in
www. tanveerpublication.com
