निम्नलिखित आयतों से यह साबित होता है कि अल्लाह तआला नेक आमाल के बदले में रिज़्क में बरकत फरमाता है।
• अगर (इस गुनाह और सरकशी के बदले) ये किताबवाले (इसाई और यहुदी) ईमान ले आते और ईशभक्ति व विनम्रता की नीति अपनाते तो हम इनकी बुराइयाँ इनसे दूर कर देते, और इनको नेमत भरी जन्नतों में पहुँचाते। क्या ही अच्छा होता कि इन्होंने तौरात और इंजील और दूसरी किताबों को क़ायम किया होता जो इनके रब की ओर से इनके पास भेजी गई थीं। ऐसा करते तो इनके लिए ऊपर से रोज़ी बरसती और नीचे से उबलती। (सूरह मायदा, आयत 65-66)
• अगर बस्तियों के लोग ईमान लाते और 'तक़वा' धार्मिक पवित्रता की नीति अपनाते तो हम उनपर आसमान और ज़मीन से बरकतों के द्वार खोल देते, मगर उन्होंने तो (ईश्वर के आदेश को) झुठलाया, अतः हमने उस बुरी कमाई के हिसाब में उन्हें पकड़ लिया जो वे समेट रहे थे। (सूरह आराफ, आयत 66)
क्यू. एस. खान
(B.E. Mech)
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