क्या होगा अगर हम ईमानदारी से माल न कमाएँ ?

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• हज़रत मुहम्मद  ने फरमाया, "जो शख्स हराम तरीका (सूद, रिश्वत वगेराह) से माल जमा करके सदका करे इसको इस सदके का कोई सवाब नहीं मिलेगा बल्कि इसे हराम कमाई का वबाल होगा। (मुस्तदरिक 1440 अनअबी हुरैरा (रजि.)

हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, "इन्सान के कदम कयामत के दिन अल्लाह के सामने से इस वक्त तक नहीं हटेंगे जब तक इससे इसके माल के बारे में सवाल न कर लिया जाएगा कि इसको कहा से कमाया और कहा खर्च किया। (तिरमिजी : 2416, अन अब्दुल्ल बिन मसउद (रजि.)


हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फरमाया, “इसमें कोई शक नहीं की अल्लाह तआला महान और पवित्र है। (यानी हर कमज़ोरी से पाक, हर कोताही (अभाव) से दूर और हर मादी ज़रूरत (भौतिक आवश्यक्ताओं) से आज़ाद है। इसलिए वह कोई ऐसी चीज़ कुबूल नहीं फरमाता जो पाक न हो।” (पाक का यह मतलब है कि नेक काम सिर्फ ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए किए जाऐं, न कि उसकी नुमाईश के लिए।) और दान किया जानेवाला माल भी जायज़ तरीके से कमाया हुआ हो। (इसका मतलब यह है कि हलाल माल हो, हराम माल ना हो।) हज़रत मुहम्मद ﷺ ने फिर फरमाया, “अल्लाह तआला ने संसार के सारे लोगों को वही आदेश दिए जो तमाम पैगंबरों को दिए गए।" 
अल्लाह तआला ने पैगंबरों को आदेश दिया किः 

“ऐ पैगंबर! पाकिज़ा चीज़े खाओं और नेक कर्म करो। जो कर्म तुम करते हो मैं उन्हें जानता हूँ।” 
(सूरह मुमिनून, आयत 51)

“लोगों! जो चीज़े ज़मीन में हलाल और पाकिज़ा हैं वह खाओं।" 
(सूरह बकरा, आयत 168) 
(पाक चीज़े यानी हलाल और ज़ायज गिज़ा/आहार)

इसके बाद हज़रत मुहम्मद ﷺ ने जिक्र फरमाया एक ऐसे आदमी का जो लम्बा सफर कर रहा है और ऐसी हालत में है कि उसके बाल बिखरे हुए हैं और शरीर और कपड़ों पर धूल-मिट्टी है, और वह आकाश की तरफ हाथ उठा उठाकर दुआ करता है, “ऐ मेरे रब! ऐ मेरे पालनहार !” (मगर उस की कोई दुआ कुबूल नहीं होती क्योंकि) उस का खाना हराम (अवैध) है। उसका पीना हराम है। उसके कपड़े हराम हैं, और हराम गिज़ा (आहार) से उसका पालन पोषण हुआ है, तो उस मनुष्य की दुआ कैसे स्वीकार होगी?  
(मस्नद अहमद, बा-हवाला मुआरिफुल हदीस, पृ. 76)

ऊपर दी गई हदीस के अनुसार अगर गिज़ा (आहार) हराम (अवैध) माल से खरीदी गई हो तो मुसीबत के समय हम कितनी ही आजिज़ी (नम्रता) से दुआ करें, अल्लाह तआला हमारी दुआ स्वीकार नहीं करेगा। अल्लाह तआला की रहमत (कृपा) और मदद् के लिए हमें ईमानदारी से ज़ायज रोज़ी कमानी ज़रूरी है।

हज़रत अनस (रजि.) ने हज़रत मुहम्मद ﷺ से निवेदन किया कि वह उनके लिए (यानी आप ﷺ हज़रत अनस (रजि.) के लिए) दुआ करें ताकी वह “मुस्तजाबुद्दवात” हो जाऐं। "मुस्तजाबुद्दवात" का अर्थ है कि वह बंदा जिस कि दुआ अल्लाह तआला ज़रूर कुबूल फरमाता है। हज़रत मुहम्मद ﷺ ने जवाब दिया, “ए अनस (रज़ि.) हलाल माल कमाओ और हलाल गिज़ा खाओ। अल्लाह तआला तुम्हें “मुस्तजाबुद्दवात” बना देगा। हराम से खुद को दूर रखो क्यूंकि हराम का एक निवाला, बंदे की दुआ को 40 दिन तक नाकाबिले कुबूल (अस्वीकारीय) बना देता है।”  (तरगीब)

अर्थातः हराम आहार से कई रूहानी (आध्यात्मिक) और शारीरिक खराबियां पैदा होते हैं। हराम आहार ईमान का चिराग बुझा देता है और दिल अंधकारमय हो जाता है। उस आहार से बंदा सुस्त, आल्सी और निकम्मा हो जाता है। हराम आहार की वजह से बंदा हराम काम करने लगता है और ना-ज़ायज विचारों और बुरे कामों का शिकार हो
जाता है। उससे ज़मीर (अंतरात्मा) मर जाता है। बंदे और नेकी (सत्कर्म) के बीच दीवार खड़ी हो जाती है। संक्षिप्त में यह कि हराम माल बंदे और दीन के बीच दूरी पैदा कर देता है। उसकी आखिरत (मरने के बाद का जीवन) बरबाद हो जाती है। उसपर नेकी (सत्कर्म) का दरवाज़ा बंद हो जाता है, और गुनाहों की हवस का दरवाज़ा उसके लिए पूरी तरह खुल जाता है। 

(nextPage)

आज के समाज में हराम पर अमल कई तरह से हो रहा है और अधिकांश को तो इसका ज्ञान भी नहीं है। रिश्वत, कारोबारी मामलों में धोका, झुठ, अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड़ लेना, ब्याज का कारोबार, दूसरों के हक पर डाका डालना, चोरी और लूट, और अन्य हराम कामों पर खुले आम अमल हो रहा है। हमारे धार्मिक ज्ञान में कोई कमी
नहीं (यानी हम हराम और हलाल को समझते हैं) लैकिन अमल नहीं करते। इसका खास कारण यह है कि हमारी कमाई में ईमानदारी नहीं, हमारा खाना और पानी हलाल नहीं। इसका नतीजा यह हैं कि हम नेक कामों से दूर हो गए हैं और सीधे सच्चे रास्ते से भटक गए हैं।

• हज़रत मुहम्मद ﷺ की एक हदीस के अनुसार कयामत के दिन कुछ बंदे ऐसे होंगे जिनके नेक काम बुलंदी में “तहामा पहाड़" के बराबर होंगे। इसका अर्थ यह है कि उन्होंने बहुत ज़्यादा नेक काम किए होंगे। लैकिन जब वह अल्लाह के सामने हाज़िर होंगे उस समय उनके नेक काम का महत्व नहीं होगा। (अर्थात नेक काम बरबाद हो जाऐंगे और उन्हें नर्क की आग में फेंक दिया जाएगा।) सहाबा कराम (रजि.) ने पूछा, “ऐसा क्यूं होगा ऐ अल्लाह के रसूल ﷺ ?" हज़रत मुहम्मद ﷺ ने जवाब में फरमाया कि "उन्होंने नमाज़, रोज़ा, ज़कात अदा की और हज़ भी किया लैकिन खुद को हराम (माल) से कभी नहीं बचाया जिसकी वजह से उन की तमाम नेकियां बरबाद हो गईं।"
(किताबुल कबाइर)

• अल्लाह के हुक्म से गफलत का वबाल
कुरआन में अल्लाह तआला फरमाता है जो शख्स रहमान (यानी अल्लाह) की नसीहत से आखें बद कर ले तो वे इसपर शैतान मुसलत कर देता है जो (हर वक्त) इसके साथ रहता है और वह शैतान ऐसे लोगों को सीधे रास्ते से रोकते रहता है और वह समझता है की हम सीधे रास्ते पर है। (सूरह जख्रफ : 36 ता 37)

• दुनीया में लगे रहने का अंजाम रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया "जो शख्स (दुनीया की जैबो ज़ीनत को देखकर और अपने अंजाम को सोचे बगैर) दुनीया में घुसता है तो वह अपने आप को जहन्नुम में डालता है। (शहाबल इमान : 10124 अन बिन हुरैरा (रजि.)

• दुनीया में बरकत
रसूल अल्लाह ﷺ ने फरमाया “अल्लाह तआला जिसके साथ भलाई का इरादा फरमाता है तो उसको दुनीया की समझ अता फरमाता है और बेशक दुनीया बड़ी मीठी और सरसब्ज और शादाब चीज़ है जो इसको इसके हक के साथ (यानी हलाल) तरीके से लेगा तो अल्लाह इसकेलिए इसमें बरकत देगा। (मस्नद अहमद : 16404 अन मआवे बिन अबि सुफियान (रजि.)

क्यू. एस. खान 
(B.E. Mech)

क्यू. एस. खान की पुस्तकें इंटरनेट पर पढ़ने तथा डाउनलोड करने के लिए
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www.freeeducation.co.in
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